Tuesday 25 November 2014

-मामला जच्चा बच्चा अस्पताल में नवजात 5 बच्चों की मौत का-

डाक्टरों ने डाक्टर अलका मित्तल व एसएमओ पर हुई कार्रवाई का किया विरोध 
*सरकार ने 48 घंटों में फैसला वापिस न लिया तो होगी मुकम्मल हड़ताल* 

लुधियाना--- सिविल अस्पताल में विगत दिवस प्रसव के दौरान 5 बच्चों की हुई मौत के बाद सेहत मंत्री द्वारा कार्रवाई करते हुए विगत दिवस डा.अलका मित्तल को सस्पैंड किए जाने तथा एसएमओ डा.आरके करकरा का तबादला किये जाने के बाद आज सिविल अस्पताल के डाक्टरों ने आपातकालीन डाक्टरों की मीटिंग बुलाई और फैसला लिया कि यदि सरकार ने अपने लिए फैसले को 48 घंटों में वापिस नहीं लिया तो समूह स्टाफ हड़ताल करने के लिए मजबूर होगा।पत्रकार सम्मेलन के दौरान डाक्टरों ने कहा कि डा.अलका की सस्पैंशन को सरकार ख़ारिज करे तथा एसएमओ डा.करकरा के तब्दले पर रोक लगाए। डा.अविनाश जिंदल,डा.दविंद्र और डा.अलका मित्तल ने कहा कि जच्चा बच्चा अस्पताल में बिना डाक्टर,स्टाफ और बिना साधनो के अस्पताल का उदघाटन क्रेडिट वार के चक्कर में कर दिया गया। जिन बच्चों की मौत हुई है उनमे से तीन की हालत तो पहले ही ठीक नहीं थी जिसके वारे उनके परिजनों को बता दिया गया था और कुछ से फाइलों पर दस्तखत भी करवा लिए गए थे। उन्होंने कहा कि प्रसव के लिए महिलाएं सिविल अस्पताल तब आती हैं जब केस कंप्लीकेटेड हो जाता है और पैसों का भी आभाव होता है.। धनवान व्यक्ति तो समय समय पर चैक भी करवाते रहते हैं परन्तु आर्थिक तौर पर कमजोर लोग स्वास्थ सेवाएँ लेने में असमर्थ होते हैं.। डाक्टरों ने कहा कि सिविल अस्पताल में सुविधाओं का आभाव है और महंगी दवाईयां भी यहाँ उपलब्ध नहीं होती। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सिविल अस्पताल में स्टाफ की कमी को पूरा करने की तरफ तो सरकार ध्यान नहीं देती और हम सरकारी नौकर होने के कारण कुछ बोल भी नहीं सकते। सिविल अस्पताल में सिर्फ तीन गायनी डाक्टरों की टीम है,फिर भी एक महीने में करीबन 500 प्रसव करवाए जाते हैं जबकि निजी बड़े अस्पतालों में 20 से 25 डाक्टरों की टीम महीने में 100 से 200 तक डिलीवरी करवाते हैं। डाक्टरों ने कहा कि दवाईयों,स्टाफ व ने साधनों की कमी से जूझने वाले सिविल अस्पताल के डाक्टर अपनी समर्था के अनुसार अपनी जी जान लगा  करते हैं,फिर भी उनकी मेहनत का यह इनाम मिलता है। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण गायनी डाक्टरों को वहाँ तैनात किया गया है जहाँ मरीजों की संख्या कम है। इस संबंध में कई वार लिखा भी गया है, परन्तु सिस्टम को ठीक करना सरकार नहीं चाहती। यदि सरकार ने अपने फैसले को वापिस नहीं लिया तो संघर्ष को तेज किया जायेगा।

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