Thursday 20 November 2014

मोदी सरकार के मजदूर विरोधी ''श्रम सुधारों" के खिलाफ रोष प्रदर्शन

लुधियाना-(सम्राट)केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा नवउदारवादी नीतियों के तहत श्रम कानूनों में मकादूर विरोधी संशोधनों के खिला$फ आज टेक्सटाइल-हौकारी कामगार यूनियन व कारखाना मकादूर यूनियन द्वारा डी.सी. कार्यालय पर काोरदार रोष-प्रदर्शन किया गया। मकादूर संगठनों ने तथाकथित श्रम सुधारों की तीखी आलोचना करते हुए भारत सरकार से घोर मजदूर विरोधी नीति रद्द करने की माँग की। डी.सी. लुधियाना के जरिए भारत सरकार को एक माँग पत्र भेजा गया है। संगठनों के वक्ताओं ने प्रदर्शन को सम्बोधन में कहा कि पहले ही पूँजीपति मजदूरों के श्रम की भयंकर लूट कर रहे हैं जिसकी वजह से मजदूर गरीबी-बदहाली के सताए हुए हैं। ''श्रम सुधारों" के कारण मजदूरों की लूट और तीखी होगी। इस खिलाफ मजदूरों में भारी रोष है। अगर मोदी सरकार ने यह नीति रद्द नहीं की तो हाकिमों को तीखे मजदूर संघर्ष का सामना करना होगा। वक्ताओं ने कहा कि मजदूरों ने बड़े आन्दोलनों के जरिए कानूनी श्रम आधिकार हासिल किए थे। हालांकि देश के श्रम कानून बहुत ढीले-ढालें हैं और यह भी बहुत कम लागू होते हैं। सिर्फ छ:-सात प्रतिशत मजदूरों को ही श्रम कानूनों के तहत कुछ अधिकार हासिल होते हैं। ये संगठित क्षेत्र के मजदूर हैं जिनमें से बड़ी संख्या सरकारी क्षेत्र के मजदूरों की है। लेकिन ये ढीले-ढाले, नाम मात्र से, और बहुत कम लागू होने वाले श्रम कानून भी खत्म किए जा रहे हैं। मजदूर संगठित होकर पूँजीपतियों और सरकार पर दबाव बनाकर कुछ न कुछ अधिकार हासिल कर लेते थे। देशी-विदेशी पूँजीपतियों को भारत के श्रम कानून बड़ी समस्या महसूस होते हैं। इसलिए श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधन और मकादूर अधिकारों को खत्म करना सरकारों का बड़ा ऐजण्डा रहा है। वास्तव में मोदी सरकार पिछली कांग्रेस सरकार की नीतियों को ही और सख्ती और तेजी  से आगे बढ़ा रही है। मोदी सरकार ने इस तरफ बड़े कदम उठाए हैं। ''श्रमेव जयते" योजना के तहत ''इंसपेक्टर राज" खत्म करने के नाम पर पूँजीपतियों को श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ाने की कानूनी तौर पर और अधिक छूट दी जा रही है। पूँजीपति खुद ही लिख कर इण्टरनेट पर डाल देंगे कि वे श्रम कानून लागू कर रहे हैं। इंसपेक्टर किस कारखाने में जाँच-पड़ताल करने जाएँगे यह कम्पयूटर की लाटरी से तय होगा! श्रम कानूनों में हो रहे एक और संशोधन के बाद 300 से कम मकादूरों वाले कारखाने को मालिक कभी भी बन्द कर सकेगा। इसके लिए उसे सरकार या अदालत से कोई आज्ञा लेने की जरूरत नहीं होगी। साथ ही कारखाने से जुड़े किसी झगड़े को अदालत ले जाने के लिए अब तीन वर्ष का समय तय कर दिया गया है। पहले इससे सम्बन्धित कोई समय सीमा नहीं थी। स्त्रियों की रात की ड्यूटी पर पाबन्दियों को भी ढीला किया जा रहा है। पक्के मजदूरों के स्थान पर ट्रेनी मजदूरों की भर्ती  करने के बारे में संशोधन किए जा रहे हैं। इसके  साथ ही एक तिमाही में ओवर टाइम की हद 50 से बढ़ा कर 100 घण्टे की जा रही है। पहले ही मजदूर एक महीने में 50 से 120 घण्टे ओवर टाइम काम करते थे। यह संशोधन लागू होने के बाद क्या हालत बनेगी यह समझा जा सकता हैै? प्रदर्शन को टेक्सटाइल-हौजऱी कामगार यूनियन, पंजाब के अध्यक्ष राजविन्दर, कारखाना मजदूर यूनियन के अध्यक्ष लखविन्दर, नौजवान भारत सभा के नेता कुलविन्दर, मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्ज यूनियन के अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह सहित अन्यों
 ने सम्बोधित किया।

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